Login to make your Collection, Create Playlists and Favourite Songs

Login / Register
Mere Ekant Ka Pravesh Dwar | Nirmala Putul
Mere Ekant Ka Pravesh Dwar | Nirmala Putul

Mere Ekant Ka Pravesh Dwar | Nirmala Putul

00:02:14
Report
मेरे एकांत का प्रवेश-द्वार | निर्मला पुतुलयह कविता नहींमेरे एकांत का प्रवेश-द्वार हैयहीं आकर सुस्ताती हूँ मैंटिकाती हूँ यहीं अपना सिरज़िंदगी की भाग-दौड़ से थक-हारकरजब लौटती हूँ यहाँआहिस्ता से खुलता हैइसके भीतर एक द्वारजिसमें धीरे से प्रवेश करती मैंतलाशती हूँ अपना निजी एकांतयहीं मैं वह होती हूँजिसे होने के लिए मुझेकोई प्रयास नहीं करना पड़तापूरी दुनिया से छिटककरअपनी नाभि से जुड़ती हूँ यहीं!मेरे एकांत में देवता नहीं होतेन ही उनके लिएकोई प्रार्थना होती है मेरे पासदूर तक पसरी रेतजीवन की बाधाएँकुछ स्वप्न औरप्राचीन कथाएँ होती हैंहोती है—एक धुँधली-सी धुनहर देश-काल में जिसेअपनी-अपनी तरह से पकड़तीस्त्रियाँ बाहर आती हैं अपने आपसेमैं कविता नहींशब्दों में ख़ुद को रचते देखती हूँअपनी काया से बाहर खड़ी होकरअपना होना!

Mere Ekant Ka Pravesh Dwar | Nirmala Putul

View more comments
View All Notifications